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गीता का दसवाँ अध्याय विभूति योग कहलाता है।
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अपनी दिव्य विभूतियों (दैवी ऐश्वर्यों) का वर्णन करते हैं।
वे अर्जुन को बताते हैं कि –
- समस्त जगत उनकी शक्ति और विभूति से युक्त है,
- प्रत्येक श्रेष्ठ, अद्वितीय और सामर्थ्यवान वस्तु या व्यक्तित्व उनका ही अंश है।
यह अध्याय भक्त में भक्ति और श्रद्धा को और प्रबल करता है।
भगवद गीता अध्याय 10 श्लोक एवं हिंदी अर्थ
श्लोक 10.1–10.5
भगवान बोले –
- “हे अर्जुन! मेरी बातें सुनो, क्योंकि मैं तुम्हें हित की बातें कह रहा हूँ।
- न देवता और न ही ऋषि मेरे उद्गम को जानते हैं।
- मैं ही सबका आदि, मध्य और अंत हूँ।
- बुद्धि, ज्ञान, क्षमा, सत्य, शांति, सुख-दुःख, भय-निभय, जन्म-मरण, अहिंसा, समता – ये सब मुझसे ही उत्पन्न होते हैं।”
श्लोक 10.6–10.11
- सप्तर्षि, मनु और महर्षि सब मेरे द्वारा उत्पन्न हैं।
- जो भक्त भावपूर्ण होकर मेरी भक्ति करते हैं, मैं उन्हें विवेक प्रदान करता हूँ और उनके हृदय में स्थित होकर अज्ञान को दूर करता हूँ।
श्लोक 10.12–10.18
अर्जुन बोले –
- “हे भगवान! आप परमब्रह्म, परमधाम, परमपवित्र और सनातन पुरुष हैं।
- आप सबके आदिदेव और जन्मरहित ईश्वर हैं।
- मैं आपकी महिमा सुनना चाहता हूँ। कृपया अपनी विभूतियों का विस्तार से वर्णन कीजिए।”
श्लोक 10.19–10.42
भगवान बोले –
- “हे अर्जुन! मेरी विभूतियों का वर्णन अंतहीन है।
- प्रमुख विभूतियाँ सुनो –
- मैं आत्मा हूँ, जो सब प्राणियों के हृदय में स्थित है।
- मैं आदित्य में विष्णु, ज्योतिष्मानों में सूर्य, वेदों में सामवेद और देवताओं में इंद्र हूँ।
- इंद्रियों में मन, प्राणियों में चेतना और पर्वतों में मेरु हूँ।
- ऋषियों में नारद, गंधर्वों में चित्ररथ, यक्षों में कुबेर और पांडवों में अर्जुन हूँ।
- शस्त्रधारियों में राम, जलचरों में मगरमच्छ, नदियों में गंगा हूँ।
- हे अर्जुन! जान लो कि जो भी भव्यता, सौंदर्य, शक्ति और महिमा है, वह सब मेरी ही विभूति का अंश है।
- किंतु मेरी सम्पूर्ण विभूतियों का वर्णन करना असंभव है। इस थोड़े से ज्ञान से ही तुम समझ सकते हो कि मैं ही सम्पूर्ण सृष्टि को धारण करता हूँ।”
अध्याय 10 का सारांश
विभूति योग हमें सिखाता है कि –
- भगवान ही सभी शक्तियों, गुणों और ऐश्वर्यों का मूल स्रोत हैं।
- संसार में जो भी श्रेष्ठ, अद्भुत और महान है, वह भगवान की विभूति का ही अंश है।
- ईश्वर की विभूतियों को जानकर भक्त की श्रद्धा और भक्ति और भी दृढ़ हो जाती है।
👉 यह अध्याय स्पष्ट करता है कि सम्पूर्ण जगत भगवान की विभूतियों से परिपूर्ण है और उनका स्मरण भक्ति को गहरा करता है।