गीता का बारहवाँ अध्याय भक्ति योग कहलाता है।

यह अध्याय विशेष रूप से भक्त और भगवान के संबंध को स्पष्ट करता है।
अर्जुन भगवान से प्रश्न करते हैं कि –

कौन श्रेष्ठ है?

  1. वे जो निराकार, अव्यक्त परमात्मा की उपासना करते हैं
  2. या वे जो साकार भगवान की प्रेमपूर्वक भक्ति करते हैं

भगवान बताते हैं कि साकार रूप की भक्ति करना साधकों के लिए सरल और कल्याणकारी मार्ग है।


भगवद गीता अध्याय 12 श्लोक एवं हिंदी अर्थ

श्लोक 12.1–12.4

अर्जुन ने पूछा –

  • “हे भगवान! जो भक्त आपके साकार रूप की उपासना करते हैं और जो अव्यक्त निराकार ब्रह्म का ध्यान करते हैं – उनमें से कौन श्रेष्ठ है?”

भगवान बोले –

  • “जो अनन्य भाव से मेरा स्मरण करते हैं और श्रद्धा के साथ मेरी उपासना करते हैं, वे मुझे अत्यंत प्रिय हैं।
  • जो अव्यक्त ब्रह्म का ध्यान करते हैं, वे भी मुक्त होते हैं, परंतु वह मार्ग कठिन है।”

श्लोक 12.5–12.8

  • “निराकार की साधना कठिन है, क्योंकि देहधारी जीव के लिए अव्यक्त मार्ग पर चलना सहज नहीं है।
  • परंतु जो मेरा स्मरण करता है, मन और बुद्धि को मुझमें अर्पित करता है – वह शीघ्र ही मुझे प्राप्त करता है।”

श्लोक 12.9–12.12

भगवान ने साधना की क्रमबद्ध सीढ़ियाँ बताईं –

  1. यदि तुम मन को मुझमें स्थिर नहीं कर सकते, तो अभ्यास योग करो।
  2. यदि अभ्यास भी कठिन हो, तो मेरे लिए कर्म करो
  3. यदि यह भी संभव न हो, तो निष्काम कर्म करो।
  4. यदि निष्काम कर्म भी कठिन लगे, तो ज्ञान और ध्यान का मार्ग अपनाओ।

श्लोक 12.13–12.20

भगवान ने अपने प्रिय भक्त के लक्षण बताए –

  • जो द्वेष रहित, करुणामय, क्षमाशील और संतोषी है।
  • जो मित्र और शत्रु में समभाव रखता है।
  • जो आसक्ति, अहंकार और मोह से रहित है।
  • जो शांत, श्रद्धावान और स्थिरचित्त है।
    ऐसा भक्त भगवान को अत्यंत प्रिय है।

अध्याय 12 का सारांश

भक्ति योग हमें सिखाता है कि –

  • साकार भगवान की प्रेमभक्ति सबसे सरल और सर्वोत्तम साधना है।
  • निराकार उपासना भी संभव है, परंतु वह कठिन और जटिल है।
  • सच्चा भक्त विनम्र, करुणामय, समभावयुक्त और अहंकाररहित होता है।
  • भगवान के लिए कर्म और समर्पण ही मोक्ष का सरल मार्ग है।

👉 यह अध्याय स्पष्ट करता है कि अनन्य भक्ति ही ईश्वर को पाने का सबसे सहज और प्रिय मार्ग है