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गीता का सोलहवाँ अध्याय दैवासुर संपद विभाग योग कहलाता है।
इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने मनुष्य के दो प्रकार के स्वभाव और गुणों का वर्णन किया है –
- दैवी संपत्ति – जो मोक्ष की ओर ले जाती है (सत्य, अहिंसा, दया, शांति, विनम्रता, श्रद्धा, दान आदि)।
- आसुरी संपत्ति – जो बंधन और पतन की ओर ले जाती है (अहंकार, क्रोध, कपट, हिंसा, लोभ, कामना आदि)।
यह अध्याय स्पष्ट करता है कि मनुष्य का स्वभाव ही उसके जीवन की दिशा तय करता है।
भगवद गीता अध्याय 16 श्लोक एवं हिंदी अर्थ
श्लोक 16.1–16.3
भगवान ने दैवी गुणों का वर्णन किया –
- निडरता, मन की पवित्रता, आत्मसंयम, दान, यज्ञ, अध्ययन, तप, अहिंसा, सत्य, करुणा, क्षमा।
- दया, नम्रता, धैर्य, शांति, विनम्रता, लज्जा, दृढ़ता और क्षमा।
- दैवी गुणों वाला मनुष्य मोक्ष के योग्य होता है।
श्लोक 16.4
आसुरी गुण –
- दंभ, अहंकार, क्रोध, कठोरता, अज्ञान और पाखंड।
- इन गुणों वाला मनुष्य बंधन और अधोगति को प्राप्त होता है।
श्लोक 16.5–16.9
- दैवी संपत्ति मोक्ष का मार्ग है, जबकि आसुरी संपत्ति बंधन और नरक का मार्ग है।
- आसुरी स्वभाव वाले लोग कहते हैं – “यह जगत अनीश्वर और असत्य है, केवल वासना और भोग के लिए है।”
- ऐसे लोग अधर्म, लोभ और हिंसा से संसार का नाश करते हैं।
श्लोक 16.10–16.20
- आसुरी लोग काम, क्रोध और लोभ में फँसकर पापमय कर्म करते हैं।
- वे धन और भोग के अहंकार में डूबे रहते हैं।
- वे बार-बार जन्म लेकर अधम योनियों में गिरते हैं।
- अंततः वे भगवान से विमुख होकर नरक में जाते हैं।
श्लोक 16.21–16.24
- काम, क्रोध और लोभ – ये तीन नरक के द्वार हैं, जो आत्मा का पतन करते हैं।
- जो इन्हें छोड़ देता है, वही मोक्ष पाता है।
- मनुष्य को शास्त्रानुसार आचरण करना चाहिए।
- शास्त्रों की मर्यादा ही धर्म और अधर्म का अंतिम प्रमाण है।
अध्याय 16 का सारांश
दैवासुर संपद विभाग योग हमें सिखाता है कि –
- मनुष्य को दैवी गुणों को अपनाना चाहिए, क्योंकि वही मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
- आसुरी गुण मनुष्य को पाप, अधोगति और नरक की ओर धकेलते हैं।
- काम, क्रोध और लोभ ही पतन के मुख्य कारण हैं।
- शास्त्रों का पालन और भगवान की भक्ति ही सच्चा मार्ग है।
👉 यह अध्याय स्पष्ट करता है कि दैवी गुण ही जीवन को धन्य बनाते हैं, जबकि आसुरी गुण विनाशकारी होते हैं।