गीता का चौथा अध्याय ज्ञान, कर्म और संन्यास के अद्भुत संगम की शिक्षा देता है।

यहाँ भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि उन्होंने यह अविनाशी योग पहले सूर्यदेव और ऋषियों को दिया था।

इस अध्याय में अवतारवाद (भगवान के धरती पर अवतरण का रहस्य), निष्काम कर्म की महिमा और ज्ञान से कर्म का शुद्ध होना विस्तार से वर्णित है।


भगवद गीता अध्याय 4 श्लोक एवं हिंदी अर्थ

श्लोक 4.1–4.3

श्रीकृष्ण बोले – “मैंने यह सनातन योग पहले सूर्यदेव को दिया, सूर्य ने मनु को, और मनु ने इक्ष्वाकु को बताया। यह परंपरा से चला आ रहा था, लेकिन समय के साथ खो गया। अब मैं यह अमूल्य ज्ञान तुम्हें देता हूँ क्योंकि तुम मेरे भक्त और सखा हो।”


श्लोक 4.4–4.6

अर्जुन ने पूछा – “आप तो अभी जन्मे हैं, फिर आपने सूर्य को यह ज्ञान कैसे दिया?”
भगवान बोले – “हे पार्थ! मेरे अनेक जन्म हुए हैं और तुम्हारे भी, परन्तु मैं उन्हें जानता हूँ, तुम नहीं। जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूँ। धर्म की रक्षा, सज्जनों की रक्षा और दुष्टों के विनाश हेतु मैं प्रकट होता हूँ।”


श्लोक 4.7–4.9

“जब भी धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब मैं अवतार लेता हूँ।
साधुओं की रक्षा और पापियों के विनाश के लिए, धर्म की स्थापना हेतु मैं युग-युग में प्रकट होता हूँ।
जो मेरे अवतार और कर्मों के दिव्य स्वरूप को जानता है, वह मृत्यु के बाद मुझे प्राप्त होता है और जन्म-मृत्यु से मुक्त हो जाता है।”


श्लोक 4.10–4.15

कई महात्माओं ने राग-द्वेष से मुक्त होकर, मन और आत्मा को संयमित कर, ज्ञान और कर्म से ईश्वर को प्राप्त किया।
हे अर्जुन! मैं सब कर्म करता हूँ, परन्तु उनसे बंधा नहीं हूँ। इसी प्रकार तुम भी निष्काम भाव से कर्म करो।


श्लोक 4.16–4.23

कर्म, अकर्म और विकर्म का रहस्य अत्यंत गूढ़ है।

  • जो निष्काम भाव से कर्म करता है, वही ज्ञानी है।
  • जिसकी आसक्ति समाप्त हो गई है, वह कर्मों में लिप्त रहते हुए भी कर्मफल से मुक्त रहता है।
  • ऐसा ज्ञानी योगी ही शांति और मोक्ष को प्राप्त करता है।

श्लोक 4.24–4.32 (यज्ञ की विविधता)

भगवान ने कहा – “सभी यज्ञ (ज्ञान, तपस्या, दान, इन्द्रियनिग्रह) आत्मशुद्धि के साधन हैं।
परंतु ज्ञानयज्ञ सबसे श्रेष्ठ है, क्योंकि इसमें सभी कर्म ज्ञानरूपी अग्नि में जल जाते हैं।”


श्लोक 4.33–4.42

ज्ञान से बढ़कर कोई पवित्र तत्व नहीं है।

  • ज्ञान को गुरु के चरणों में विनम्र होकर, सेवा और प्रश्न से प्राप्त करो।
  • ज्ञानी व्यक्ति आत्मा में स्थित रहता है और संशयों से मुक्त होता है।
  • हे अर्जुन! अज्ञान से उत्पन्न संदेह को तलवार की तरह ज्ञान से काटो और कर्मयोग में लग जाओ।

अध्याय 4 का सारांश

ज्ञान कर्म संन्यास योग हमें सिखाता है कि –

  • भगवान समय-समय पर धर्म की स्थापना हेतु अवतार लेते हैं।
  • कर्मफल त्यागकर कर्म करना ही मुक्ति का मार्ग है।
  • सभी यज्ञों में ज्ञानयज्ञ सर्वोत्तम है।
  • गुरु के माध्यम से प्राप्त ज्ञान ही अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करता है।

👉 यह अध्याय गीता के अवतारवाद और ज्ञानयोग का आधार है।