गीता का पाँचवाँ अध्याय कर्म और संन्यास के अंतर को स्पष्ट करता है।

अर्जुन जानना चाहता है कि – क्या संन्यास (कर्म त्याग) श्रेष्ठ है या कर्मयोग (निष्काम कर्म करना)

श्रीकृष्ण बताते हैं कि दोनों ही मार्ग मोक्षदायी हैं, लेकिन निष्काम कर्मयोग अधिक सरल और श्रेष्ठ है, क्योंकि यह जीवन जीते-जी भी साधक को शांति और मुक्ति प्रदान करता है।


भगवद गीता अध्याय 5 श्लोक एवं हिंदी अर्थ

श्लोक 5.1–5.6

अर्जुन ने पूछा – “हे कृष्ण! आप कभी संन्यास की प्रशंसा करते हैं और कभी कर्मयोग की। कृपया निश्चित रूप से बताइए कि इनमें कौन-सा श्रेष्ठ है?”

भगवान बोले –

  • संन्यास और कर्मयोग दोनों ही उत्तम हैं, परन्तु निष्काम कर्मयोग अधिक श्रेष्ठ है।
  • जो व्यक्ति द्वेष और आसक्ति से रहित होकर कर्म करता है, वही सच्चा संन्यासी है।
  • केवल कर्म त्यागने वाला नहीं, बल्कि फल-त्याग से कर्म करने वाला वास्तविक योगी है।

श्लोक 5.7–5.12

  • जो मन और इन्द्रियों को जीत लेता है, वह आत्मसंयमी योगी सभी जीवों को समान दृष्टि से देखता है।
  • कर्मयोगी व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है और कर्मफल का त्याग कर शांति प्राप्त करता है।
  • जबकि आसक्त व्यक्ति कर्मफल में बंध जाता है।

श्लोक 5.13–5.16

  • ज्ञानी योगी मन से सब कर्मों को ईश्वर को अर्पित करता है और बाहरी रूप से केवल शरीर द्वारा कर्म करता है।
  • ऐसा योगी पाप और पुण्य से मुक्त रहता है।
  • जैसे सूर्य अंधकार को दूर करता है, वैसे ही ज्ञान अज्ञान को नष्ट कर देता है।

श्लोक 5.17–5.21

  • जिसकी बुद्धि और मन ईश्वर में स्थिर हैं, वही मुक्त जीव है।
  • ज्ञानी ब्राह्मण, गधा, गाय, कुत्ता या चाण्डाल — सबको समान दृष्टि से देखता है।
  • वह न सुख में हर्षित होता है, न दुःख में विषादग्रस्त — यही योगी की स्थिति है।

श्लोक 5.22–5.26

  • इन्द्रिय विषयों से उत्पन्न सुख दुःख का कारण होता है और नाशवान है।
  • जो योगी इच्छाओं और क्रोध को जीत लेता है, वही आनंद को प्राप्त करता है।
  • ऐसा आत्मसंयमी योगी ईश्वर का साक्षात्कार करता है और अमर आनंद का अनुभव करता है।

श्लोक 5.27–5.29

  • जो साधक प्राणायाम, इन्द्रियनिग्रह और ध्यान से मन को स्थिर करता है, वह ब्रह्म में लीन हो जाता है।
  • ऐसा योगी सब भूतों का मित्र है और ईश्वर का अनन्य भक्त होता है।
  • वह शांति, मुक्ति और परम सुख को प्राप्त करता है।

अध्याय 5 का सारांश

कर्म संन्यास योग हमें सिखाता है कि –

  • केवल कर्म का त्याग नहीं, बल्कि फल का त्याग ही सच्चा संन्यास है।
  • कर्मयोग अधिक व्यावहारिक और सरल मार्ग है।
  • समदर्शी योगी सुख-दुःख, मित्र-शत्रु और मान-अपमान में समान भाव रखता है।
  • ऐसा योगी अंततः शांति और मोक्ष प्राप्त करता है।

👉 यह अध्याय स्पष्ट करता है कि निष्काम कर्मयोग ही गीता का मूल संदेश है