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गीता का आठवाँ अध्याय अक्षर ब्रह्म योग कहलाता है।
इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर देते हैं और बताते हैं कि –
- ब्रह्म क्या है,
- अध्यात्म क्या है,
- कर्म क्या है,
- मृत्यु के समय ईश्वर-स्मरण का महत्व क्या है।
यह अध्याय जीवात्मा, परमात्मा और मृत्यु-काल में स्मरण की गूढ़ शिक्षा प्रदान करता है।
भगवद गीता अध्याय 8 श्लोक एवं हिंदी अर्थ
श्लोक 8.1–8.2
अर्जुन ने पूछा – “हे भगवान! ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ किसे कहते हैं?”
श्लोक 8.3–8.4
भगवान बोले –
- अविनाशी परम सत्य को ब्रह्म कहते हैं।
- आत्मा का स्वरूप अध्यात्म है।
- सृष्टि में जो कर्म प्राणियों को उत्पन्न करता है, वही कर्म है।
- नश्वर वस्तुओं को अधिभूत, देवताओं को अधिदैव और यज्ञ में मैं स्वयं अधियज्ञ हूँ।
श्लोक 8.5–8.7
- जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करता है, वह मुझे ही प्राप्त होता है।
- अंत समय में जिस भाव का स्मरण किया जाता है, वही अगला जन्म निर्धारित करता है।
- इसलिए हे अर्जुन! युद्ध करते हुए भी मन और बुद्धि को मुझमें लगाकर सदा मेरा स्मरण करो।
श्लोक 8.8–8.13
- जो साधक अचल मन से निरंतर ईश्वर का स्मरण करता है, वह मुझे ही प्राप्त करता है।
- ब्रह्म का ध्यान करने वाला योगी मृत्यु के समय “ॐ” का उच्चारण करते हुए परम पद को प्राप्त करता है।
श्लोक 8.14–8.16
- जो अनन्य भाव से निरंतर मेरा स्मरण करता है, वह मुझे सहज ही प्राप्त होता है।
- इस लोक से लेकर ब्रह्मलोक तक सब नश्वर हैं, परंतु जो मुझे प्राप्त कर लेता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता।
श्लोक 8.17–8.22
- ब्रह्मा का एक दिन हजार युगों के बराबर है और उसकी रात भी उतनी ही लंबी होती है।
- सृष्टि चक्र बार-बार उत्पन्न और नष्ट होता है।
- लेकिन अक्षर ब्रह्म नित्य और अविनाशी है।
- वही परम धाम है, जिसे प्राप्त करके जीव जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
श्लोक 8.23–8.28
- मृत्यु के समय देवयान (उत्तरी मार्ग) से जाने वाला योगी मोक्ष प्राप्त करता है, जबकि पितृयान (दक्षिणी मार्ग) से जाने वाला पुनर्जन्म लेता है।
- जो योगी दिन-रात, शुभ-अशुभ से परे होकर ईश्वर में लीन रहता है, वह परमगति प्राप्त करता है।
अध्याय 8 का सारांश
अक्षर ब्रह्म योग हमें सिखाता है कि –
- मृत्यु-काल में स्मरण अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- “ॐ” और ईश्वर का ध्यान करने वाला भक्त जन्म-मरण से मुक्त होता है।
- संसार चक्र नश्वर है, केवल अक्षर ब्रह्म ही शाश्वत है।
- ईश्वर की भक्ति और ध्यान से ही परमगति संभव है।
👉 यह अध्याय स्पष्ट करता है कि सच्चा योगी मृत्यु के समय भी भगवान का स्मरण करके अमर पद को प्राप्त करता है।