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गीता का नौवाँ अध्याय राजविद्या राजगुह्य योग कहलाता है।
यह अध्याय गीता का हृदय माना जाता है, क्योंकि इसमें भगवान श्रीकृष्ण भक्ति का सर्वोच्च महत्व बताते हैं।
यह अध्याय सर्वश्रेष्ठ ज्ञान और रहस्य (राजविद्या और राजगुह्य) का वर्णन करता है।
श्रीकृष्ण बताते हैं कि –
- भक्ति सबसे सरल और उत्तम मार्ग है,
- ईश्वर सबमें व्याप्त हैं,
- और भक्त-भक्ति से भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
भगवद गीता अध्याय 9 श्लोक एवं हिंदी अर्थ
श्लोक 9.1–9.3
भगवान बोले – “हे अर्जुन! मैं तुम्हें वह राजविद्या और राजगुह्य ज्ञान बताऊँगा, जिसे जानकर तुम मोक्ष को प्राप्त करोगे।
यह सबसे पवित्र, अत्यंत गूढ़ और सीधा-सादा ज्ञान है।
लेकिन जो अविश्वासी हैं, वे इसका लाभ नहीं पाते और संसार में जन्म-मरण का चक्कर काटते रहते हैं।”
श्लोक 9.4–9.10
- यह सम्पूर्ण जगत मुझसे व्याप्त है, परंतु मैं उसमें बँधा हुआ नहीं हूँ।
- सभी प्राणी मेरे अधीन हैं, लेकिन मैं उन सबसे परे हूँ।
- जैसे वायु आकाश में रहती है, वैसे ही सब मुझमें स्थित हैं।
- माया के माध्यम से सृष्टि उत्पन्न होती है, परंतु मैं अनासक्त रहकर उसे संचालित करता हूँ।
श्लोक 9.11–9.19
- मूर्खजन मुझे मानव रूप में देखकर अवज्ञा करते हैं, जबकि मैं सबका ईश्वर हूँ।
- महात्मा लोग मुझे दैवी स्वरूप मानकर मेरी भक्ति करते हैं।
- मैं ही यज्ञ, तप, मंत्र, औषधि, अग्नि, आहुति और फल हूँ।
- मैं ही मृत्यु और अमरत्व हूँ, अस्तित्व और अनस्तित्व हूँ।
श्लोक 9.20–9.25
- स्वर्ग की इच्छा से यज्ञ करने वाले देवताओं को प्राप्त करते हैं, किंतु वह सुख भी नश्वर है।
- जो मुझे अनन्य भाव से भजते हैं, उन्हें मैं योग-क्षेम प्रदान करता हूँ।
- जो अन्य देवताओं की पूजा करते हैं, वे भी वास्तव में मुझे ही पूजते हैं, परंतु वे अविद्या से सीमित फल प्राप्त करते हैं।
श्लोक 9.26–9.34
- यदि कोई भक्त मुझे पत्र (पत्ता), पुष्प, फल या जल भी प्रेमपूर्वक अर्पित करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ।
- जो कुछ भी करो, खाओ, अर्पण करो – उसे भगवान को समर्पित करो।
- जो ऐसा करता है, वह कर्मबंधन से मुक्त हो जाता है।
- भगवान कहते हैं – “हे अर्जुन! मेरा भक्त चाहे किसी भी जाति, लिंग या परिस्थिति का हो, वह मुझे भजकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।”
अध्याय 9 का सारांश
राजविद्या राजगुह्य योग हमें सिखाता है कि –
- भक्ति ही सर्वोच्च साधन है, जो सरल भी है और गूढ़ भी।
- भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं, परंतु भक्त-भक्ति से विशेष रूप से प्रकट होते हैं।
- जो श्रद्धा और प्रेम से भगवान को स्मरण करता है, वह भगवान को प्राप्त करता है।
- जाति, लिंग या स्थिति कोई बाधा नहीं है – केवल भक्ति ही मुक्ति का साधन है।
👉 यह अध्याय स्पष्ट करता है कि प्रेम और भक्ति से भगवान सरलता से प्रसन्न होते हैं और भक्त को मोक्ष प्रदान करते हैं।