ना देना चाहे कुबेर का धन, मगर सलीका सहूर देना

ना देना चाहे कुबेर का धन,
मगर सलीका सहूर देना।
उठा के सर जी सकूँ जहाँ में,
बस इतनी इज़्ज़त जरूर देना ।

ना बैर कोई न कोई नफरत, नज़र न आये कहीं बुराई ।
हर एक दिल में तू दे दिखाई, मेरी नज़र को वो नूर देना ॥
उठा के सर जी सकूँ…

बड़ी ना मांग में चीज़ तुमसे, औकात जितनी है मांगता हूँ ।
जो घाव दुःख ने दिए हैं दिल में, तू उसका मरहम जरूर देना ॥
ना देना चाहे कुबेर का धन…

जब तक बिक ना था, तो कोई पूछता ना था
तुमने खरीद कर मुझे अनमोल कर दिया 

मैं मांगता हूँ ऐ मेरे कान्हा, वो चीज़ मुझको जरूर देना ।
मिले ज़माने के सारी दौलत, मगर ना मुझको गुरूर देना ॥
उठा के सर जी सकूँ जहां में…

ना देना चाहे कुबेर का धन, मगर सलीका सहूर देना ।
उठा के सर जी सकूँ जहाँ में, बस इतनी इज़्ज़त जरूर देना ॥

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