आया बुलावा भवन से, मैं रह नहीं पाई अपने पति संग चढ़ के चडाई नंगे पाँव आई
आया बुलावा भवन से, मैं रह नहीं पाई
अपने पति संग चढ़ के चडाई नंगे पाँव आई
लाल चुनरी चढाऊं, तेरी ज्योति जगाऊं,
बस इतना वर चाहूँ , मैं बस इतना वर पाऊं,
दर्शन को हर साल सदा सुहागन ही आऊँ
हे अखंड ज्योतों वाली माता, मेरा भी अखंड सुहाग रहे
सदा खनके चूड़ियाँ मेरे हाथों में, सिंदूर बरी मेरी मांग रहे
महके परिवार, रहे खिली बहार, कलियों की तरह मुकाऊं
अपने भगतो पर करती हो उपकार सदा
ममता के खोले रहती हो भण्डार सदा
मैं तो आई तेरे द्वार, मेरे भाग्य सवार
तेरी नित नित ज्योति जगाऊं
मुझ को वर दो मेरा स्वामी तेरी भक्ति में मगन रहे
जब तक यह जीवन रहे सरल लक्खा को तेरी लगन रहे
तेरा सच्चा दरबार, तेरी महिमा अपार,