(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)संजय उवाच-एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य तांजलिर्वेपमानः किरीटी ।नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णंसगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य ॥  35
(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)संजय उवाच-एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य तांजलिर्वेपमानः किरीटी ।नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णंसगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य ॥ 35

सञ्जय उवाच |
एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य
कृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी |
नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं
सगद्गदं भीतभीत: प्रणम्य || 35||

सञ्जय उवाच |
एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य
कृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी |
नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं
सगद्गदं भीतभीत: प्रणम्य || 35||

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भावार्थ:

संजय बोले- केशव भगवान के इस वचन को सुनकर मुकुटधारी अर्जुन हाथ जोड़कर काँपते हुए नमस्कार करके, फिर भी अत्यन्त भयभीत होकर प्रणाम करके भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गद्‍गद्‍ वाणी से बोले॥35॥

Translation

Sanjay said: Hearing these words of Keshav, Arjun trembled with dread. With palms joined, he bowed before Shree Krishna and spoke in a faltering voice, overwhelmed with fear.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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