कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्‌ । इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्‌ । इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥

कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् |
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचार: स उच्यते || 6||

karmendriyāṇi sanyamya ya āste manasā smaran
indriyārthān vimūḍhātmā mithyāchāraḥ sa uchyate

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भावार्थ:

जो मूढ़ बुद्धि मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात दम्भी कहा जाता है॥6॥

Translation

जो मूढ़ बुद्धि मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात दम्भी कहा जाता है॥6॥

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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