क्या खेल रचाया है तूने खाटू नगरी में बैकुंठ बसाया है लिरिक्स

क्या खेल रचाया है,
तूने खाटू नगरी में,
बैकुंठ बसाया है।।

कहता जग सारा है,
कहता जग सारा है,
वो मोरछड़ी वाला,
हारे का सहारा है,
क्या प्रेम लुटाया है,
क्या प्रेम लुटाया है,
कर्मा का खीचड़,
दोनों हाथों से खाया है।



दर आए जो सवाली है,
दर आए जो सवाली है,
तूने सबकी अर्ज सुनी,
कोई लोटा ना खाली है,
कोई वीर ना सानी का,
कोई वीर ना सानी का,
घर घर डंका बजता,
बाबा शीश के दानी का।।



तेरी ज्योत नूरानी का,
तेरी ज्योत नूरानी का,
क्या अजब करिश्मा है,
श्याम कुंड के पानी का
नहीं पल की देर करी,
नहीं पल की देर करी,
जो आया शरण तेरी,
तूने उसकी विपद हरी।।



क्या खेल रचाया है,
तूने खाटू नगरी में,
बैकुंठ बसाया है।।

See also  Bhagavad Gita: Chapter 3, Verse 25

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