देव्युवाच, Sri Mahalaxmi Suprabhatham -M.S Subbalaxmi
देव्युवाच, Sri Mahalaxmi Suprabhatham -M.S Subbalaxmi

Sri Mahalaxmi Suprabhatham -M.S Subbalaxmi

देव्युवाच
देवदेव! महादेव! त्रिकालज्ञ! महेश्वर!
करुणाकर देवेश! भक्तानुग्रहकारक! ||
अष्टोत्तर शतं लक्ष्म्याः श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः ||

ईश्वर उवाच
देवि! साधु महाभागे महाभाग्य प्रदायकं |
सर्वैश्वर्यकरं पुण्यं सर्वपाप प्रणाशनम् ||
सर्वदारिद्र्य शमनं श्रवणाद्भुक्ति मुक्तिदम् |
राजवश्यकरं दिव्यं गुह्याद्-गुह्यतरं परं ||
दुर्लभं सर्वदेवानां चतुष्षष्टि कलास्पदम् |
पद्मादीनां वरान्तानां निधीनां नित्यदायकम् ||
समस्त देव संसेव्यं अणिमाद्यष्ट सिद्धिदं |
किमत्र बहुनोक्तेन देवी प्रत्यक्षदायकं ||
तव प्रीत्याद्य वक्ष्यामि समाहितमनाश्शृणु |
अष्टोत्तर शतस्यास्य महालक्ष्मिस्तु देवता ||
क्लीं बीज पदमित्युक्तं शक्तिस्तु भुवनेश्वरी |
अङ्गन्यासः करन्यासः स इत्यादि प्रकीर्तितः ||

ध्यानम्
वन्दे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां
हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैः नानाविधैः भूषितां |
भक्ताभीष्ट फलप्रदां हरिहर ब्रह्माधिभिस्सेवितां
पार्श्वे पङ्कज शङ्खपद्म निधिभिः युक्तां सदा शक्तिभिः ||

सरसिज नयने सरोजहस्ते धवल तरांशुक गन्धमाल्य शोभे |
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीदमह्यम् ||


प्रकृतिं, विकृतिं, विद्यां, सर्वभूत हितप्रदां |
श्रद्धां, विभूतिं, सुरभिं, नमामि परमात्मिकाम् || 1 ||

वाचं, पद्मालयां, पद्मां, शुचिं, स्वाहां, स्वधां, सुधां |
धन्यां, हिरण्ययीं, लक्ष्मीं, नित्यपुष्टां, विभावरीम् || 2 ||

अदितिं च, दितिं, दीप्तां, वसुधां, वसुधारिणीं |
नमामि कमलां, कान्तां, क्षमां, क्षीरोद सम्भवाम् || 3 ||

अनुग्रहपरां, बुद्धिं, अनघां, हरिवल्लभां |
अशोका,ममृतां दीप्तां, लोकशोक विनाशिनीम् || 4 ||

नमामि धर्मनिलयां, करुणां, लोकमातरं |
पद्मप्रियां, पद्महस्तां, पद्माक्षीं, पद्मसुन्दरीम् || 5 ||

पद्मोद्भवां, पद्ममुखीं, पद्मनाभप्रियां, रमां |
पद्ममालाधरां, देवीं, पद्मिनीं, पद्मगन्धिनीम् || 6 ||

पुण्यगन्धां, सुप्रसन्नां, प्रसादाभिमुखीं, प्रभां |
नमामि चन्द्रवदनां, चन्द्रां, चन्द्रसहोदरीम् || 7 ||

चतुर्भुजां, चन्द्ररूपां, इन्दिरा,मिन्दुशीतलां |
आह्लाद जननीं, पुष्टिं, शिवां, शिवकरीं, सतीम् || 8 ||

विमलां, विश्वजननीं, तुष्टिं, दारिद्र्य नाशिनीं |
प्रीति पुष्करिणीं, शान्तां, शुक्लमाल्याम्बरां, श्रियम् || 9 ||

भास्करीं, बिल्वनिलयां, वरारोहां, यशस्विनीं |
वसुन्धरा, मुदाराङ्गां, हरिणीं, हेममालिनीम् || 10 ||

धनधान्यकरीं, सिद्धिं, स्रैणसौम्यां, शुभप्रदां |
नृपवेश्म गतानन्दां, वरलक्ष्मीं, वसुप्रदाम् || 11 ||

शुभां, हिरण्यप्राकारां, समुद्रतनयां, जयां |
नमामि मङ्गलां देवीं, विष्णु वक्षःस्थल स्थिताम् || 12 ||

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विष्णुपत्नीं, प्रसन्नाक्षीं, नारायण समाश्रितां |
दारिद्र्य ध्वंसिनीं, देवीं, सर्वोपद्रव वारिणीम् || 13 ||

नवदुर्गां, महाकालीं, ब्रह्म विष्णु शिवात्मिकां |
त्रिकालज्ञान सम्पन्नां, नमामि भुवनेश्वरीम् || 14 ||

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्रराज तनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीं |
दासीभूत समस्तदेव वनितां लोकैक दीपाङ्कुराम् ||
श्रीमन्मन्द कटाक्ष लब्ध विभवद्-ब्रह्मेन्द्र गङ्गाधरां |
त्वां त्रैलोक्य कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् || 15 ||

मातर्नमामि! कमले! कमलायताक्षि!
श्री विष्णु हृत्-कमलवासिनि! विश्वमातः!
क्षीरोदजे कमल कोमल गर्भगौरि!
लक्ष्मी! प्रसीद सततं समतां शरण्ये || 16 ||

त्रिकालं यो जपेत् विद्वान् षण्मासं विजितेन्द्रियः |
दारिद्र्य ध्वंसनं कृत्वा सर्वमाप्नोत्-ययत्नतः |
देवीनाम सहस्रेषु पुण्यमष्टोत्तरं शतं |
येन श्रिय मवाप्नोति कोटिजन्म दरिद्रतः || 17 ||

भृगुवारे शतं धीमान् पठेत् वत्सरमात्रकं |
अष्टैश्वर्य मवाप्नोति कुबेर इव भूतले ||
दारिद्र्य मोचनं नाम स्तोत्रमम्बापरं शतं |
येन श्रिय मवाप्नोति कोटिजन्म दरिद्रतः || 18 ||

भुक्त्वातु विपुलान् भोगान् अन्ते सायुज्यमाप्नुयात् |
प्रातःकाले पठेन्नित्यं सर्व दुःखोप शान्तये |
पठन्तु चिन्तयेद्देवीं सर्वाभरण भूषिताम् || 19 ||

इति श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रं सम्पूर्णम्

https://youtu.be/tXw3NMOE_Sc

 

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