17 (11), Bhagavad Gita: Chapter 12, Verse 17
17 (11), Bhagavad Gita: Chapter 12, Verse 17

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ् क्षति |
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्य: स मे प्रिय: || 17||

yo na hṛiṣhyati na dveṣhṭi na śhochati na kāṅkṣhati
śhubhāśhubha-parityāgī bhaktimān yaḥ sa me priyaḥ

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भावार्थ:

जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है- वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है॥17॥

Translation

जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है- वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है॥17॥

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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