25 (10), Bhagavad Gita: Chapter 13, Verse 25
25 (10), Bhagavad Gita: Chapter 13, Verse 25

ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना |
अन्ये साङ् ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे || 25||

dhyānenātmani paśhyanti kechid ātmānam ātmanā
anye sānkhyena yogena karma-yogena chāpare

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भावार्थ:

स परमात्मा को कितने ही मनुष्य तो शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि से ध्यान (जिसका वर्णन गीता अध्याय 6 में श्लोक 11 से 32 तक विस्तारपूर्वक किया है) द्वारा हृदय में देखते हैं, अन्य कितने ही ज्ञानयोग (जिसका वर्णन गीता अध्याय 2 में श्लोक 11 से 30 तक विस्तारपूर्वक किया है) द्वारा और दूसरे कितने ही कर्मयोग (जिसका वर्णन गीता अध्याय 2 में श्लोक 40 से अध्याय समाप्तिपर्यन्त विस्तारपूर्वक किया है) द्वारा देखते हैं अर्थात प्राप्त करते हैं॥24॥

Translation

Some try to perceive the Supreme Soul within their hearts through meditation, and others try to do so through the cultivation of knowledge, while still others strive to attain that realization by the path of action.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 12, Verse 11

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