य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणै: सह |
सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते || 24||
ya evaṁ vetti puruṣhaṁ prakṛitiṁ cha guṇaiḥ saha
sarvathā vartamāno ’pi na sa bhūyo ’bhijāyate
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भावार्थ:
इस प्रकार पुरुष को और गुणों के सहित प्रकृति को जो मनुष्य तत्व से जानता है (दृश्यमात्र सम्पूर्ण जगत माया का कार्य होने से क्षणभंगुर, नाशवान, जड़ और अनित्य है तथा जीवात्मा नित्य, चेतन, निर्विकार और अविनाशी एवं शुद्ध, बोधस्वरूप, सच्चिदानन्दघन परमात्मा का ही सनातन अंश है, इस प्रकार समझकर सम्पूर्ण मायिक पदार्थों के संग का सर्वथा त्याग करके परम पुरुष परमात्मा में ही एकीभाव से नित्य स्थित रहने का नाम उनको ‘तत्व से जानना’ है) वह सब प्रकार से कर्तव्य कर्म करता हुआ भी फिर नहीं जन्मता॥23॥
Translation
Those who understand the truth about Supreme Soul, the individual soul, material nature, and the interaction of the three modes of nature will not take birth here again. They will be liberated regardless of their present condition.
English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda