4 (12), Bhagavad Gita: Chapter 13, Verse 4
4 (12), Bhagavad Gita: Chapter 13, Verse 4

तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् |
स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे शृणु || 4||

tat kṣhetraṁ yach cha yādṛik cha yad-vikāri yataśh cha yat
sa cha yo yat-prabhāvaśh cha tat samāsena me śhṛiṇu

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भावार्थ:

यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का तत्व ऋषियों द्वारा बहुत प्रकार से कहा गया है और विविध वेदमन्त्रों द्वारा भी विभागपूर्वक कहा गया है तथा भलीभाँति निश्चय किए हुए युक्तियुक्त ब्रह्मसूत्र के पदों द्वारा भी कहा गया है॥4॥

Translation

Listen and I will explain to you what that field is and what its nature is. I will also explain how change takes place within it, from what it was created, who the knower of the field of activities is, and what his powers are.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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