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श्रीभगवानुवाच |
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ |
ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् || 3||
śhrī bhagavān uvācha
loke ’smin dvi-vidhā niṣhṭhā purā proktā mayānagha
jñāna-yogena sāṅkhyānāṁ karma-yogena yoginām
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भावार्थ:
श्रीभगवान बोले- हे निष्पाप! इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा (साधन की परिपक्व अवस्था अर्थात पराकाष्ठा का नाम ‘निष्ठा’ है।) मेरे द्वारा पहले कही गई है। उनमें से सांख्य योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से (माया से उत्पन्न हुए सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरतते हैं, ऐसे समझकर तथा मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाली सम्पूर्ण क्रियाओं में कर्तापन के अभिमान से रहित होकर सर्वव्यापी सच्चिदानंदघन परमात्मा में एकीभाव से स्थित रहने का नाम ‘ज्ञान योग’ है, इसी को ‘संन्यास’, ‘सांख्ययोग’ आदि नामों से कहा गया है।) और योगियों की निष्ठा कर्मयोग से (फल और आसक्ति को त्यागकर भगवदाज्ञानुसार केवल भगवदर्थ समत्व बुद्धि से कर्म करने का नाम ‘निष्काम कर्मयोग’ है, इसी को ‘समत्वयोग’, ‘बुद्धियोग’, ‘कर्मयोग’, ‘तदर्थकर्म’, ‘मदर्थकर्म’, ‘मत्कर्म’ आदि नामों से कहा गया है।) होती है॥3॥
Translation
The Blessed Lord said: O sinless one, the two paths leading to enlightenment were previously explained by me: the path of knowledge, for those inclined toward contemplation, and the path of work for those inclined toward action.
English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda