जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः । त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः । त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वत: |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || 9||

janma karma cha me divyam evaṁ yo vetti tattvataḥ
tyaktvā dehaṁ punar janma naiti mām eti so ’rjuna

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भावार्थ:

हे अर्जुन! मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात निर्मल और अलौकिक हैं- इस प्रकार जो मनुष्य तत्व से (सर्वशक्तिमान, सच्चिदानन्दन परमात्मा अज, अविनाशी और सर्वभूतों के परम गति तथा परम आश्रय हैं, वे केवल धर्म को स्थापन करने और संसार का उद्धार करने के लिए ही अपनी योगमाया से सगुणरूप होकर प्रकट होते हैं। इसलिए परमेश्वर के समान सुहृद्, प्रेमी और पतितपावन दूसरा कोई नहीं है, ऐसा समझकर जो पुरुष परमेश्वर का अनन्य प्रेम से निरन्तर चिन्तन करता हुआ आसक्तिरहित संसार में बर्तता है, वही उनको तत्व से जानता है।) जान लेता है, वह शरीर को त्याग कर फिर जन्म को प्राप्त नहीं होता, किन्तु मुझे ही प्राप्त होता है॥9॥

Translation

Those who understand the divine nature of my birth and activities, O Arjun, upon leaving the body, do not have to take birth again, but come to my eternal abode.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

See also  Bhagavad Gita: Chapter 14, Verse 26

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