( भक्ति योग का विषय ) अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना । परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्‌ ॥
( भक्ति योग का विषय ) अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना । परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्‌ ॥

अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना |
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् || 8||

abhyāsa-yoga-yuktena chetasā nānya-gāminā
paramaṁ puruṣhaṁ divyaṁ yāti pārthānuchintayan

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भावार्थ:

हे पार्थ! यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यास रूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरंतर चिंतन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाश रूप दिव्य पुरुष को अर्थात परमेश्वर को ही प्राप्त होता है॥8॥

Translation

With practice, O Parth, when you constantly engage the mind in remembering Me, the Supreme Divine Personality, without deviating, you will certainly attain Me.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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