(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)श्रीभगवानुवाच-हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥
(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)श्रीभगवानुवाच-हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥

श्रीभगवानुवाच |
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतय: |
प्राधान्यत: कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ||19||

śhrī bhagavān uvācha
hanta te kathayiṣhyāmi divyā hyātma-vibhūtayaḥ
prādhānyataḥ kuru-śhreṣhṭha nāstyanto vistarasya me

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भावार्थ:

श्री भगवान बोले- हे कुरुश्रेष्ठ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ हैं, उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है॥19॥

Translation

The Blessed Lord spoke: I shall now briefly describe my divine glories to you, O best of the Kurus, for there is no end to their detail.

English Translation Of Sri Shankaracharya’s Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

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