स्वभावजेन कौन्तेय निबद्ध: स्वेन कर्मणा |कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत् || swbhāva-jena kaunteya nibaddhaḥ svena karmaṇākartuṁ nechchhasi yan mohāt kariṣhyasy avaśho ’pi tat भावार्थ: हे कुन्तीपुत्र! जिस कर्म को तू मोह के कारण करना नहीं चाहता, उसको भी अपने पूर्वकृत स्वाभाविक कर्म से बँधा हुआ परवश होकर करेगा॥60॥ Translation O Arjun, that action which out of […]
News
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 61
ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति |भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया || īśhvaraḥ sarva-bhūtānāṁ hṛid-deśhe ‘rjuna tiṣhṭhatibhrāmayan sarva-bhūtāni yantrārūḍhāni māyayā भावार्थ: हे अर्जुन! शरीर रूप यंत्र में आरूढ़ हुए संपूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है॥61॥ Translation The Supreme Lord dwells in the hearts […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 62
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत |तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् tam eva śharaṇaṁ gachchha sarva-bhāvena bhāratatat-prasādāt parāṁ śhāntiṁ sthānaṁ prāpsyasi śhāśhvatam भावार्थ: हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में (लज्जा, भय, मान, बड़ाई और आसक्ति को त्यागकर एवं शरीर और संसार में अहंता, ममता से रहित होकर एक परमात्मा को […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 63
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया |विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु iti te jñānam ākhyātaṁ guhyād guhyataraṁ mayāvimṛiśhyaitad aśheṣheṇa yathechchhasi tathā kuru भावार्थ: इस प्रकार यह गोपनीय से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुमसे कह दिया। अब तू इस रहस्ययुक्त ज्ञान को पूर्णतया भलीभाँति विचार कर, जैसे चाहता है वैसे ही कर॥63॥ Translation Thus, I have explained […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 64
सर्वगुह्यतमं भूय: शृणु मे परमं वच: |इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् || sarva-guhyatamaṁ bhūyaḥ śhṛiṇu me paramaṁ vachaḥiṣhṭo ‘si me dṛiḍham iti tato vakṣhyāmi te hitam भावार्थ: संपूर्ण गोपनीयों से अति गोपनीय मेरे परम रहस्ययुक्त वचन को तू फिर भी सुन। तू मेरा अतिशय प्रिय है, इससे यह परम हितकारक वचन मैं तुझसे […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 65
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे || man-manā bhava mad-bhakto mad-yājī māṁ namaskurumām evaiṣhyasi satyaṁ te pratijāne priyo ‘si me भावार्थ: हे अर्जुन! तू मुझमें मनवाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो और मुझको प्रणाम कर। ऐसा करने से तू मुझे ही प्राप्त होगा, यह मैं […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 66
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: || sarva-dharmān parityajya mām ekaṁ śharaṇaṁ vrajaahaṁ tvāṁ sarva-pāpebhyo mokṣhayiṣhyāmi mā śhuchaḥ भावार्थ: संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्यागकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण (इसी अध्याय के श्लोक 62 की टिप्पणी में शरण का भाव देखना […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 67
इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन |न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति || idaṁ te nātapaskyāya nābhaktāya kadāchanana chāśhuśhruṣhave vāchyaṁ na cha māṁ yo ‘bhyasūtayi भावार्थ: भावार्थ : तुझे यह गीत रूप रहस्यमय उपदेश किसी भी काल में न तो तपरहित मनुष्य से कहना चाहिए, न भक्ति-(वेद, शास्त्र और परमेश्वर तथा महात्मा और गुरुजनों में […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 68
य इदं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति |भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय: ya idaṁ paramaṁ guhyaṁ mad-bhakteṣhv abhidhāsyatibhaktiṁ mayi parāṁ kṛitvā mām evaiṣhyaty asanśhayaḥ भावार्थ: जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा- इसमें कोई संदेह नहीं है॥68॥ Translation Those, who teach this most confidential […]
Bhagavad Gita: Chapter 18, Verse 69
न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तम: |भविता न च मे तस्मादन्य: प्रियतरो भुवि na cha tasmān manuṣhyeṣhu kaśhchin me priya-kṛittamaḥbhavitā na cha me tasmād anyaḥ priyataro bhuvi भावार्थ: उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है तथा पृथ्वीभर में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्य में होगा भी नहीं॥69॥ Translation […]
